• Shri Bhagavad Gita Chapter 17 | श्री भगवद गीता अध्याय 17

  • 著者: Yatrigan kripya dhyan de!
  • ポッドキャスト

Shri Bhagavad Gita Chapter 17 | श्री भगवद गीता अध्याय 17

著者: Yatrigan kripya dhyan de!
  • サマリー

  • श्री भगवद गीता - अध्याय 17 (श्रद्धात्रय विभाग योग) अध्याय 17 का सारांश: यह अध्याय श्रद्धा के तीन प्रकारों और जीवन में उनके प्रभावों का वर्णन करता है। अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि जो लोग शास्त्रों के अनुसार आचरण नहीं करते लेकिन श्रद्धा के अनुसार कार्य करते हैं, उनकी स्थिति क्या होती है? इस पर श्रीकृष्ण श्रद्धा के तीन प्रकार—सात्त्विक, राजसिक और तामसिक—का विस्तार से वर्णन करते हैं। मुख्य विषयवस्तु: श्रद्धा के तीन प्रकार: सात्त्विक श्रद्धा: यह व्यक्ति शास्त्रों के अनुसार धार्मिक और निःस्वार्थ भाव से कार्य करता है। यह व्यक्ति ज्ञान, तपस्या और त्याग में विश्वास रखता है। राजसिक श्रद्धा: इ
    Yatrigan kripya dhyan de!
    続きを読む 一部表示

あらすじ・解説

श्री भगवद गीता - अध्याय 17 (श्रद्धात्रय विभाग योग) अध्याय 17 का सारांश: यह अध्याय श्रद्धा के तीन प्रकारों और जीवन में उनके प्रभावों का वर्णन करता है। अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि जो लोग शास्त्रों के अनुसार आचरण नहीं करते लेकिन श्रद्धा के अनुसार कार्य करते हैं, उनकी स्थिति क्या होती है? इस पर श्रीकृष्ण श्रद्धा के तीन प्रकार—सात्त्विक, राजसिक और तामसिक—का विस्तार से वर्णन करते हैं। मुख्य विषयवस्तु: श्रद्धा के तीन प्रकार: सात्त्विक श्रद्धा: यह व्यक्ति शास्त्रों के अनुसार धार्मिक और निःस्वार्थ भाव से कार्य करता है। यह व्यक्ति ज्ञान, तपस्या और त्याग में विश्वास रखता है। राजसिक श्रद्धा: इ
Yatrigan kripya dhyan de!
エピソード
  • Shri Bhagavad Gita Chapter 17 | श्री भगवद गीता अध्याय 17 | श्लोक 12
    2025/02/06

    यह श्लोक श्री भगवद गीता के 17.12 का अंश है। इसमें भगवान श्री कृष्ण राजसी यज्ञ के बारे में बताते हुए कहते हैं:

    "जो यज्ञ केवल फल की प्राप्ति के लिए, अहंकार और दंभ के साथ किया जाता है, वही राजसी यज्ञ कहलाता है। ऐसा यज्ञ केवल नाम और दिखावे के लिए किया जाता है, न कि आत्मिक उन्नति या ईश्वर की भक्ति के लिए।"

    भगवान श्री कृष्ण यहाँ यह समझा रहे हैं कि राजसी यज्ञ वह होते हैं जो व्यक्तित्व के अहंकार और दिखावे के लिए किए जाते हैं, जहाँ फल की प्राप्ति प्रमुख उद्देश्य होती है। इस प्रकार के यज्ञ में ईमानदारी और निस्वार्थ भावनाओं का अभाव होता है।

    Here are some hashtags you can use for this shloka:

    #BhagavadGita #Krishna #RajasicYajna #SelfishService #DivineWisdom #SpiritualAwakening #InnerPeace #SelfRealization #GitaShloka #Ego #SpiritualGrowth #AncientWisdom #FalseDevotion #NishkamaKarma #SelfAwareness

    続きを読む 一部表示
    1 分
  • Shri Bhagavad Gita Chapter 17 | श्री भगवद गीता अध्याय 17 | श्लोक 11
    2025/02/06

    यह श्लोक श्री भगवद गीता के 17.11 का अंश है। इसमें भगवान श्री कृष्ण सात्त्विक यज्ञ के बारे में बताते हुए कहते हैं:

    "जो यज्ञ विधिपूर्वक, फल की आकांक्षा के बिना और केवल उसके समर्पण भाव से किया जाता है, वही सात्त्विक यज्ञ कहलाता है। ऐसा व्यक्ति पूरी श्रद्धा और आत्मसमर्पण के साथ यज्ञ करता है, बिना किसी फल की इच्छा के।"

    भगवान श्री कृष्ण यहाँ यह समझा रहे हैं कि सात्त्विक यज्ञ वह होता है जिसे निस्वार्थ भाव से किया जाता है, जिसमें फल की इच्छा नहीं होती, और वह केवल ईश्वर के प्रति समर्पण और श्रद्धा से किया जाता है। यह प्रकार का यज्ञ शुद्ध और पवित्र होता है, जो आत्मिक और मानसिक विकास में सहायक होता है।

    Here are some hashtags you can use for this shloka:

    #BhagavadGita #Krishna #SattvicYajna #SelflessService #DivineWisdom #SpiritualAwakening #InnerPeace #SelfRealization #GitaShloka #NishkamaKarma #SpiritualGrowth #AncientWisdom #Devotion #SelfAwareness #HolisticLiving

    続きを読む 一部表示
    1 分
  • Shri Bhagavad Gita Chapter 17 | श्री भगवद गीता अध्याय 17 | श्लोक 10
    2025/02/05

    यह श्लोक श्री भगवद गीता के 17.10 का अंश है। इसमें भगवान श्री कृष्ण तामसी आहार के लक्षणों का वर्णन करते हुए कहते हैं:

    "जो आहार स्वादहीन, सड़ा हुआ, पूस (बासी) और बासी होने के कारण गंधयुक्त होता है, और जो उच्छिष्ट (अवशेष) और अशुद्ध होता है, वही तामसी आहार कहलाता है। ऐसे आहार तामसी प्रवृत्तियों के अनुरूप होते हैं।"

    भगवान श्री कृष्ण यहाँ यह स्पष्ट कर रहे हैं कि तामसी आहार वह होते हैं जो शारीरिक, मानसिक और आत्मिक दृष्टिकोण से हानिकारक होते हैं। ये आहार न केवल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं, बल्कि व्यक्ति के भीतर नकारात्मक ऊर्जा और मानसिक अशांति भी उत्पन्न करते हैं।

    Here are some hashtags you can use for this shloka:

    #BhagavadGita #Krishna #TamasicFood #UnhealthyDiet #SpiritualAwakening #SelfRealization #GitaShloka #MentalHealth #InnerPeace #DivineWisdom #SelfAwareness #SpiritualGrowth #AncientWisdom #HolisticLiving #EmotionalBalance

    続きを読む 一部表示
    1 分
activate_buybox_copy_target_t1

Shri Bhagavad Gita Chapter 17 | श्री भगवद गीता अध्याय 17に寄せられたリスナーの声

カスタマーレビュー:以下のタブを選択することで、他のサイトのレビューをご覧になれます。