• पैगम्बर जरथुश्त्र: जीवन और शिक्षाएँ
    2025/08/15
    “संत चरित्रावली” के इस सातवें एपिसोड में हम आपको प्राचीन ईरान के महान पैगम्बर और आध्यात्मिक मार्गदर्शक जरथुश्त्र (Zoroaster) के अद्भुत जीवन, शिक्षाओं और उनके धर्म जरथुश्त्रमत (ज़ोरोएस्ट्रियनिज़्म) की महिमा से परिचित कराएंगे। यह कथा केवल एक धार्मिक आचार्य की जीवनी नहीं, बल्कि मानवता के नैतिक उत्थान की अमर गाथा है।जरथुश्त्र का जन्म लगभग 1800–1200 ईसा पूर्व ईरान के उत्तर-पूर्व क्षेत्र में हुआ माना जाता है। उनके पिता का नाम पौरुषस्प और माता का नाम दुग्धोवा था। बचपन से ही वे अद्भुत तेजस्वी, करुणाशील और सत्य के खोजी थे।परंपरा के अनुसार, उनके जन्म के समय ही अनेक अलौकिक संकेत प्रकट हुए, जो उनके भविष्य में महान पैगम्बर बनने का द्योतक थे।युवा अवस्था में ही जरथुश्त्र ने सांसारिक मोह को त्यागकर सत्य और परमात्मा की खोज में तपस्या और ध्यान आरंभ किया। इसी साधना के दौरान उन्हें अहुरमज़दा (सर्वोच्च ईश्वर) का साक्षात्कार हुआ।उन्होंने अहुरमज़दा और छह पवित्र अमर आत्माओं (Amesha Spentas) से संवाद किया, जिनसे उन्होंने धर्म, सत्य, न्याय और प्रकाश के सिद्धांत सीखे।जरथुश्त्र के जीवन का एक महत्वपूर्ण अध्याय उनका अंग्रह मैन्‍यु (Angra Mainyu) यानी दुष्ट आत्मा के साथ संघर्ष है। उन्होंने अपने दृढ़ विश्वास और दिव्य ज्ञान से न केवल इन दुष्ट शक्तियों को परास्त किया, बल्कि लोगों को अंधविश्वास, हिंसा और झूठ से दूर रहने का संदेश दिया।जरथुश्त्र ने अपने धर्म के मूल सिद्धांत—अच्छे विचार, अच्छे शब्द और अच्छे कर्म (Good Thoughts, Good Words, Good Deeds)—को जन-जन तक पहुंचाने के लिए अनेक यात्राएँ कीं।कहा जाता है कि उन्होंने भारत और चीन तक यात्रा की और वहां भी लोगों को नैतिकता, पर्यावरण संरक्षण और सत्यनिष्ठा का संदेश दिया।उनकी शिक्षाओं ने ईरान के सम्राट विशतास्प को भी प्रभावित किया। जब विशतास्प ने जरथुश्त्र के धर्म को स्वीकार किया, तो इसका विरोध करने वाले राज्यों के साथ दो बड़े युद्ध हुए। इन संघर्षों में अंततः सत्य और न्याय की विजय हुई।जरथुश्त्र के जीवन में अनेक चमत्कार जुड़े हैं—बीमारों को ठीक करना, सूखी धरती पर वर्षा लाना, और हिंसक लोगों के हृदय को करुणा से भर देना।किंवदंती है कि अपने 77वें वर्ष में, एक आक्रमण के दौरान, मंदिर में प्रार्थना करते हुए उनका देहावसान हुआ। ...
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  • तिरुमूलर नायनार — करुणा और योग सिद्धि के अमर संत
    2025/08/12
    भारतीय संत परंपरा में तिरुमूलर नायनार का नाम एक अनोखी आध्यात्मिक गाथा के साथ जुड़ा हुआ है। वे केवल एक महान योगी और सिद्धपुरुष ही नहीं थे, बल्कि करुणा, भक्ति और योगबल के अद्वितीय संगम का जीवंत उदाहरण भी हैं। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि सच्चा योग केवल साधना में नहीं, बल्कि दूसरों के दुःख को अपना समझने में निहित है।तिरुमूलर नायनार मूल रूप से कैलास में स्थित महान योगियों के समुदाय का हिस्सा थे। भगवान शिव के वाहन नंदी के आशीर्वाद से उन्होंने अष्ट सिद्धियाँ — अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व — प्राप्त कर ली थीं। इन सिद्धियों के बावजूद उनका जीवन अत्यंत सरल और विनम्र था।किंवदंती है कि नंदी के आदेश पर उन्होंने कैलास से भारत के दक्षिणी भूभाग की यात्रा की, ताकि वे योग और शिवभक्ति का संदेश फैला सकें।एक दिन, जब वे तिरुवाडुतुरै के पास पहुँचे, उन्होंने देखा कि एक ग्वाला अचानक मृत्यु को प्राप्त हो गया है। उसके आसपास की गायें बिलख रही थीं और भयभीत होकर इधर-उधर भटक रही थीं। इस दृश्य ने तिरुमूलर नायनार के हृदय को गहरे तक छू लिया।अपने योगबल से उन्होंने परकाया प्रवेश की सिद्धि का उपयोग किया — अर्थात्, उन्होंने उस मृत ग्वाले के शरीर में प्रवेश किया, ताकि गायों की देखभाल कर सकें। इस समय उनका अपना मूल शरीर पास ही सुरक्षित रखा गया था।जब वे अपने मूल शरीर में लौटने के लिए आए, तो पाया कि वह अदृश्य हो चुका है। यह एक गूढ़ रहस्य था, जिसे उन्होंने भगवान शिव की इच्छा मानकर स्वीकार कर लिया। उन्होंने यह समझा कि अब उनका जीवन इस ग्वाले के रूप में ही आगे बढ़ना है।इसके बाद तिरुमूलर नायनार ने उस ग्वाले के रूप में ही तप, साधना और समाज सेवा जारी रखी।अपने साधना काल में उन्होंने एक महाग्रंथ की रचना की, जिसे ‘तिरुमन्तिरम्’ कहा जाता है। यह ग्रंथ तमिल भाषा में रचा गया और इसमें वेदों, उपनिषदों, योगशास्त्र और शिवभक्ति का सार समाहित है।इस ग्रंथ की विशेषताएँ —इसमें 3000 पद हैं (किंवदंती में कभी-कभी इसे तीन सौ कहा जाता है, लेकिन वास्तव में यह तीन हजार से अधिक हैं)।इसमें योग के आठ अंग, भक्ति के मार्ग और आत्मा-परमात्मा के मिलन की व्याख्या है।यह केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि सामाजिक नैतिकता, स्वास्थ्य, ध्यान और ...
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  • योगी जैगीषव्य: दुःख और कैवल्य की खोज
    2025/08/10

    इस एपिसोड में, योगी जैगीषव्य और ऋषि अवात्य के बीच एक संवाद प्रस्तुत किया गया है। जैगीषव्य, जिन्हें अपने दस महाप्रलयों के दौरान के जन्मों का पूर्ण ज्ञान है, नरक, पशु-योनि, मनुष्य और देवता के रूप में अपने अनुभवों को साझा करते हैं। वह इस बात पर जोर देते हैं कि सांसारिक सुख और यहाँ तक कि प्रकृति-लय का आनंद भी वास्तव में दुःख ही है, क्योंकि वे अपूर्ण और क्षणभंगुर हैं। योगी बताते हैं कि वास्तविक और शुद्ध आनंद केवल निरपेक्ष स्वतंत्रता या कैवल्य में ही प्राप्त होता है, जो सभी प्रकार की इच्छाओं से परे है। यह पाठ जीवन के दुःखमय स्वभाव और सच्ची मुक्ति की तलाश पर प्रकाश डालता है।भारतीय योग परंपरा में कुछ ऐसे महायोगी हुए हैं, जिनका जीवन केवल ऐतिहासिक कथा नहीं, बल्कि एक जीवंत प्रेरणा है। योगी जैगीषव्य उन्हीं अद्वितीय संतों में से एक हैं। उनकी पहचान एक ऐसे साधक के रूप में है, जिसने जन्म-मरण के चक्र को जीत लिया और मृत्यु के रहस्य को अपने अनुभव से समझ लिया। वे योग, तंत्र और ध्यान के महामहिम आचार्य माने जाते हैं।

    संत चरित्रावली का आलेख संकलन आप यहां देख सकते हैं- ⁠'संत चरित्रावली'⁠#संतचरित्रावली #YogiJaigishavya #योगसाधना #अमरयोगी #HimalayanYogi #SantPodcast #IndianSaints #योगतंत्र #आध्यात्मिकयात्रा #SantKatha


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  • दत्तात्रेय: चौबीस गुरुओं से प्राप्त ज्ञान
    2025/08/09

    इस एपिसोड में हम प्रस्तुत कर रहे हैं अद्वितीय योगी और संत भगवान दत्तात्रेय का चरित्र, जिनके जीवन और उपदेश आज भी साधकों के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
    दत्तात्रेय जी को त्रिदेव—ब्रह्मा, विष्णु और महेश—का अवतार माना जाता है। उनका जीवन त्याग, तपस्या और गुरु-शिष्य परंपरा के महत्व से भरा हुआ है।
    इस एपिसोड में आप जानेंगे:

    • दत्तात्रेय का जन्म और बाल्यकाल की कथाएँ

    • उनके 24 गुरुओं से मिली जीवन-शिक्षाएँ

    • सरल जीवन और ब्रह्मज्ञान का संदेश

    • वर्तमान युग में दत्तात्रेय उपदेशों की प्रासंगिकता

    🙏 सुनिए और आत्मचिंतन की इस यात्रा में हमारे साथ जुड़िए।
    📌 संत चरित्रावली – भारत की संत परंपरा के अनमोल रत्नों की जीवन गाथा।

    संत चरित्रावली का आलेख संकलन आप यहां देख सकते हैं- ⁠'संत चरित्रावली'⁠

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  • योगी भुशुण्डि
    2025/08/08
    हमारी भारतीय अध्यात्म परंपरा में कुछ ऐसे दिव्य पुरुष हुए हैं जिनका अस्तित्व किसी एक युग, जाति या स्थान में सीमित नहीं रहा। वे युग-युगांतर तक जीवित रहे, न केवल देह में, अपितु चेतना और ज्ञान की अखंड धारा के रूप में। ऐसे ही एक रहस्यमय, चिरंजीवी और अति दिव्य संत हैं योगी काकभुशुण्डि।इस एपिसोड में हम जानेंगे—काकभुशुण्डि कौन हैं?वे किस प्रकार अमर बने?रामकथा और भक्ति में उनकी भूमिकागरुड़ को दिया गया ज्ञानोपदेशआज की पीढ़ी के लिए उनके संदेशकाकभुशुण्डि का परिचयकाकभुशुण्डि एक अमर संत हैं, जिनका उल्लेख रामचरितमानस, योगवाशिष्ठ, और अन्य कई पुरातन ग्रंथों में मिलता है। वे एक कौवे (काक) के रूप में संसार में विचरण करते हैं, परंतु उनका चेतन स्तर उच्चतम योगी के समान है। उनके जीवन का उद्देश्य है – रामकथा का प्रचार और ज्ञान का प्रसार।एक समय वे महाशिवभक्त थे, परंतु उन्हें रामभक्ति से विरोध था। कई जन्मों के तप और शिव के कोप के पश्चात जब उन्होंने रामभक्ति को स्वीकारा, तब शिवजी ने उन्हें काक रूप में चिरंजीव होने का वरदान दिया और रामकथा के विस्तार का कार्य सौंपा।काकभुशुण्डि को रामचरित का महान गायक कहा गया है। वे रामकथा को अनेक बार अनेक युगों में अलग-अलग श्रोताओं को सुनाते रहे हैं। उनके अनुसार, "रामकथा न केवल एक कथा है, बल्कि यह आत्मज्ञान की यात्रा है।"गरुड़ जी जब श्रीहरि के आदेश से काकभुशुण्डि के पास ज्ञान की प्राप्ति के लिए पहुँचे, तब उन्होंने गूढ़ रहस्यों से युक्त रामकथा और भक्तियोग पर संवाद किया।यह संवाद न केवल भक्तों के लिए पथदर्शी है, बल्कि हर आध्यात्मिक जिज्ञासु को मोह, अहंकार, माया और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति का मार्ग दिखाता है।उद्धरण:"प्रेम भगति जोग अगम अपारा। पाइ न कोइ तजि संसारा॥"(रामचरितमानस – उत्तरकांड)विनम्रता और क्षमा का महत्व: काकभुशुण्डि ने स्वीकार किया कि ज्ञान केवल अहंकार से नहीं, बल्कि शरणागति और भक्ति से प्राप्त होता है।भक्ति और ज्ञान का समन्वय: वे कहते हैं कि बिना भक्ति के ज्ञान अधूरा है और बिना ज्ञान के भक्ति दिशाहीन।राम नाम की महिमा: वे अनंत युगों से रामनाम का जाप करते आ रहे हैं। रामनाम को ही वे मोक्ष का एकमात्र साधन मानते हैं।देह की नहीं, चित्त की साधना महत्वपूर्ण है।आज के युग में जब हर ...
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  • ऋषि याज्ञवल्क्य – अद्वैत वेदांत के आद्य प्रवक्ता
    2025/08/07
    ऋषि याज्ञवल्क्य, भारतीय आध्यात्मिक परंपरा के उन महान मनीषियों में से एक हैं जिनकी उपस्थिति न केवल वैदिक युग में बल्कि आज भी दार्शनिक विमर्शों में उतनी ही प्रासंगिक है। उनके विचार, प्रश्नोत्तर शैली, और शिष्या गार्गी तथा पत्नी मैत्रेयी के साथ हुए संवाद, हमें वेदांत के अद्वैत स्वरूप की गहराई में ले जाते हैं।ऋषि याज्ञवल्क्य का जन्म एक ब्राह्मण कुल में हुआ था। उन्होंने गुरु वाजश्रवा से वेदों का अध्ययन किया। प्रारंभ से ही वे अत्यंत बुद्धिमान और प्रखर प्रश्नकर्ता थे। याज्ञवल्क्य का विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण उन्हें सामान्य वेदपाठियों से भिन्न बनाता है। वे केवल शास्त्र को पढ़ने तक सीमित नहीं रहे, बल्कि उन्होंने अनुभव और तर्क के आधार पर सत्य की खोज को प्राथमिकता दी।उनका नाम “याज्ञवल्क्य” स्वयं संकेत करता है – “यज्ञों का विश्लेषक”। वे शुक्ल यजुर्वेद के प्रवर्तक माने जाते हैं। उन्होंने शुक्ल यजुर्वेद का संकलन और विस्तार किया, जो वैदिक साहित्य का महत्वपूर्ण भाग है।एक प्रसिद्ध कथा में जनक की सभा का वर्णन मिलता है, जहाँ अनेक ऋषि और ज्ञानी विद्वान एकत्र होते हैं। जनक यह जानना चाहते हैं कि “वास्तविक ब्रह्मज्ञानी” कौन है। उस चुनौती को स्वीकारते हुए याज्ञवल्क्य सभा में आते हैं। वहाँ उन्होंने ब्रह्मविद्या पर शास्त्रार्थ करते हुए सभी को निरुत्तर किया।विशेष रूप से गार्गी के साथ उनका संवाद अत्यंत गूढ़ और आध्यात्मिक ज्ञान से भरपूर है। गार्गी, एक विदुषी महिला ऋषि थीं, जिन्होंने बड़े साहस से याज्ञवल्क्य से ब्रह्म का रहस्य जानने के लिए गूढ़ प्रश्न पूछे। याज्ञवल्क्य ने उत्तर देते हुए कहा—"या वायु: तस्य उपासकः ब्रह्म जानाति, स मृत्युम् तरति।"(जो वायु के पीछे के मूल तत्व—ब्रह्म—को जानता है, वही मृत्यु को पार करता है।)सबसे प्रसिद्ध और गूढ़ संवाद याज्ञवल्क्य और उनकी पत्नी मैत्रेयी के बीच है, जो बृहदारण्यक उपनिषद में मिलता है। यह संवाद आत्मा, ब्रह्म, और मोक्ष के गूढ़ रहस्यों को उद्घाटित करता है।जब याज्ञवल्क्य सन्यास लेने का निश्चय करते हैं, वे अपनी दो पत्नियों – मैत्रेयी और कात्यायनी – से अपना धन विभाजित करना चाहते हैं। परन्तु मैत्रेयी उनसे पूछती हैं—"यदि हे न ऋषे! यह सम्पत्ति मुझे अमरत्व प्रदान नहीं ...
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  • "महर्षि वेदव्यास: ज्ञान के आदि स्रोत"
    2025/08/07
    संत चरित्रावली पॉडकास्ट के इस पहले एपिसोड में हम जानेंगे महर्षि वेदव्यास के जीवन, उनके कार्य और उनके योगदान के बारे में, जिन्होंने भारतीय संस्कृति की नींव को अक्षुण्ण बनाया। वेदव्यास एक ऐसे ऋषि थे जिन्होंने केवल शास्त्रों की रचना ही नहीं की, बल्कि उन्होंने पूरे मानव समाज को एक नई दृष्टि दी। वेदों का विभाजन, पुराणों की रचना, और महाभारत जैसा विराट महाकाव्य – यह सब उनकी असाधारण बौद्धिक क्षमता और दिव्य दृष्टि का परिणाम है।महर्षि वेदव्यास का जन्म स्वयं में ही एक चमत्कार था – एक आध्यात्मिक संयोग, जिसने संसार को एक ऐसा मनीषी दिया जो समय से परे होकर आज भी उपस्थित है। वे ज्ञान के प्रतिनिधि थे, पर उन्होंने कभी स्वयं को प्रतिष्ठा का पात्र नहीं बनाया। वे एक शिष्य थे, गुरु थे, योगी थे और लेखक भी। वे जीवन के हर पहलू को जानते थे, पर उनमें कभी आग्रह नहीं था – केवल समर्पण था।महाभारत जैसे ग्रंथ को लिखना केवल एक कथा कहना नहीं था – यह मानव जाति को आत्म-चिंतन के लिए एक दर्पण देना था। यही कारण है कि इसे 'पंचम वेद' भी कहा जाता है। वेदव्यास की दृष्टि केवल बाह्य नहीं थी – वे जीवन के भीतर भी प्रवेश करते हैं – मन, आत्मा और चित्त के गूढ़ प्रश्नों को खोलते हैं।इस एपिसोड में हम उनके जीवन की घटनाओं को, उनके निर्णयों को और उनके कार्यों को इस दृष्टि से देखेंगे कि आज के युग में उनका क्या महत्व है। क्या हम आज भी उनके ज्ञान को आत्मसात कर सकते हैं? क्या हमारी समस्याओं का समाधान उनके द्वारा दिये गए उपदेशों में है?'संत चरित्रावली' का यह शुभारंभ महर्षि वेदव्यास से ही क्यों – इसका उत्तर भी इसी एपिसोड में मिलेगा। वे न केवल एक 'संत' थे, बल्कि 'संस्कारों के शिल्पी' थे। वे केवल भारत के नहीं, बल्कि पूरे मानव समाज के ऋषि हैं।उनकी स्मृति में हम इस पॉडकास्ट को प्रारंभ करते हैं – ज्ञान, भक्ति और परमार्थ के मार्ग पर चलने की प्रेरणा के साथ। आइये, श्रवण करें उस महापुरुष की कथा, जिनकी लेखनी ने मानवता को दिशा दी।संत चरित्रावली का आलेख संकलन आप यहां देख सकते हैं- ⁠'संत चरित्रावली'⁠#संतचरित्रावली #महर्षिवेदव्यास #IndianSpirituality #SantKatha #VedVyasPodcast #ज्ञानकेआदिस्रोत #महाभारत #BhagavadGita #HinduSages #SanatanWisdom #PodcastIndia #SpiritualPodcast #भारतीयऋषि #VyasPurnima #PuranicSages
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