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ऋषि याज्ञवल्क्य – अद्वैत वेदांत के आद्य प्रवक्ता

ऋषि याज्ञवल्क्य – अद्वैत वेदांत के आद्य प्रवक्ता

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ऋषि याज्ञवल्क्य, भारतीय आध्यात्मिक परंपरा के उन महान मनीषियों में से एक हैं जिनकी उपस्थिति न केवल वैदिक युग में बल्कि आज भी दार्शनिक विमर्शों में उतनी ही प्रासंगिक है। उनके विचार, प्रश्नोत्तर शैली, और शिष्या गार्गी तथा पत्नी मैत्रेयी के साथ हुए संवाद, हमें वेदांत के अद्वैत स्वरूप की गहराई में ले जाते हैं।ऋषि याज्ञवल्क्य का जन्म एक ब्राह्मण कुल में हुआ था। उन्होंने गुरु वाजश्रवा से वेदों का अध्ययन किया। प्रारंभ से ही वे अत्यंत बुद्धिमान और प्रखर प्रश्नकर्ता थे। याज्ञवल्क्य का विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण उन्हें सामान्य वेदपाठियों से भिन्न बनाता है। वे केवल शास्त्र को पढ़ने तक सीमित नहीं रहे, बल्कि उन्होंने अनुभव और तर्क के आधार पर सत्य की खोज को प्राथमिकता दी।उनका नाम “याज्ञवल्क्य” स्वयं संकेत करता है – “यज्ञों का विश्लेषक”। वे शुक्ल यजुर्वेद के प्रवर्तक माने जाते हैं। उन्होंने शुक्ल यजुर्वेद का संकलन और विस्तार किया, जो वैदिक साहित्य का महत्वपूर्ण भाग है।एक प्रसिद्ध कथा में जनक की सभा का वर्णन मिलता है, जहाँ अनेक ऋषि और ज्ञानी विद्वान एकत्र होते हैं। जनक यह जानना चाहते हैं कि “वास्तविक ब्रह्मज्ञानी” कौन है। उस चुनौती को स्वीकारते हुए याज्ञवल्क्य सभा में आते हैं। वहाँ उन्होंने ब्रह्मविद्या पर शास्त्रार्थ करते हुए सभी को निरुत्तर किया।विशेष रूप से गार्गी के साथ उनका संवाद अत्यंत गूढ़ और आध्यात्मिक ज्ञान से भरपूर है। गार्गी, एक विदुषी महिला ऋषि थीं, जिन्होंने बड़े साहस से याज्ञवल्क्य से ब्रह्म का रहस्य जानने के लिए गूढ़ प्रश्न पूछे। याज्ञवल्क्य ने उत्तर देते हुए कहा—"या वायु: तस्य उपासकः ब्रह्म जानाति, स मृत्युम् तरति।"(जो वायु के पीछे के मूल तत्व—ब्रह्म—को जानता है, वही मृत्यु को पार करता है।)सबसे प्रसिद्ध और गूढ़ संवाद याज्ञवल्क्य और उनकी पत्नी मैत्रेयी के बीच है, जो बृहदारण्यक उपनिषद में मिलता है। यह संवाद आत्मा, ब्रह्म, और मोक्ष के गूढ़ रहस्यों को उद्घाटित करता है।जब याज्ञवल्क्य सन्यास लेने का निश्चय करते हैं, वे अपनी दो पत्नियों – मैत्रेयी और कात्यायनी – से अपना धन विभाजित करना चाहते हैं। परन्तु मैत्रेयी उनसे पूछती हैं—"यदि हे न ऋषे! यह सम्पत्ति मुझे अमरत्व प्रदान नहीं ...
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