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योगी भुशुण्डि

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हमारी भारतीय अध्यात्म परंपरा में कुछ ऐसे दिव्य पुरुष हुए हैं जिनका अस्तित्व किसी एक युग, जाति या स्थान में सीमित नहीं रहा। वे युग-युगांतर तक जीवित रहे, न केवल देह में, अपितु चेतना और ज्ञान की अखंड धारा के रूप में। ऐसे ही एक रहस्यमय, चिरंजीवी और अति दिव्य संत हैं योगी काकभुशुण्डि।इस एपिसोड में हम जानेंगे—काकभुशुण्डि कौन हैं?वे किस प्रकार अमर बने?रामकथा और भक्ति में उनकी भूमिकागरुड़ को दिया गया ज्ञानोपदेशआज की पीढ़ी के लिए उनके संदेशकाकभुशुण्डि का परिचयकाकभुशुण्डि एक अमर संत हैं, जिनका उल्लेख रामचरितमानस, योगवाशिष्ठ, और अन्य कई पुरातन ग्रंथों में मिलता है। वे एक कौवे (काक) के रूप में संसार में विचरण करते हैं, परंतु उनका चेतन स्तर उच्चतम योगी के समान है। उनके जीवन का उद्देश्य है – रामकथा का प्रचार और ज्ञान का प्रसार।एक समय वे महाशिवभक्त थे, परंतु उन्हें रामभक्ति से विरोध था। कई जन्मों के तप और शिव के कोप के पश्चात जब उन्होंने रामभक्ति को स्वीकारा, तब शिवजी ने उन्हें काक रूप में चिरंजीव होने का वरदान दिया और रामकथा के विस्तार का कार्य सौंपा।काकभुशुण्डि को रामचरित का महान गायक कहा गया है। वे रामकथा को अनेक बार अनेक युगों में अलग-अलग श्रोताओं को सुनाते रहे हैं। उनके अनुसार, "रामकथा न केवल एक कथा है, बल्कि यह आत्मज्ञान की यात्रा है।"गरुड़ जी जब श्रीहरि के आदेश से काकभुशुण्डि के पास ज्ञान की प्राप्ति के लिए पहुँचे, तब उन्होंने गूढ़ रहस्यों से युक्त रामकथा और भक्तियोग पर संवाद किया।यह संवाद न केवल भक्तों के लिए पथदर्शी है, बल्कि हर आध्यात्मिक जिज्ञासु को मोह, अहंकार, माया और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति का मार्ग दिखाता है।उद्धरण:"प्रेम भगति जोग अगम अपारा। पाइ न कोइ तजि संसारा॥"(रामचरितमानस – उत्तरकांड)विनम्रता और क्षमा का महत्व: काकभुशुण्डि ने स्वीकार किया कि ज्ञान केवल अहंकार से नहीं, बल्कि शरणागति और भक्ति से प्राप्त होता है।भक्ति और ज्ञान का समन्वय: वे कहते हैं कि बिना भक्ति के ज्ञान अधूरा है और बिना ज्ञान के भक्ति दिशाहीन।राम नाम की महिमा: वे अनंत युगों से रामनाम का जाप करते आ रहे हैं। रामनाम को ही वे मोक्ष का एकमात्र साधन मानते हैं।देह की नहीं, चित्त की साधना महत्वपूर्ण है।आज के युग में जब हर ...
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