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サマリー
あらすじ・解説
यह श्लोक श्री भगवद गीता के 17.6 का अंश है। इसमें भगवान श्री कृष्ण कहते हैं:
"जो लोग अपने शरीर में स्थित भूतों (जीवों) को, बिना विवेक और बिना चेतना के, प्रकोपित करते हैं, और जो मुझे, जो शरीर के अंदर स्थित हूँ, नहीं पहचानते, वे असुर प्रवृत्तियों वाले होते हैं।"
भगवान श्री कृष्ण यहाँ उन लोगों का वर्णन कर रहे हैं जो अपने शरीर और मन को अविवेकपूर्ण रूप से नियंत्रित करते हैं और अपनी इच्छाओं को पूरी करने के लिए दूसरों की उपेक्षा करते हैं। वे भगवान के वास्तविक रूप को नहीं पहचानते और असुर प्रवृत्तियों में लिप्त रहते हैं। यह श्लोक यह बताता है कि असुर प्रवृत्तियाँ व्यक्ति के अंदर की चेतना और विवेक का हरण करती हैं।
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