エピソード

  • भारतवर्ष
    2021/12/01
    एकांतवास में सम्राट दुष्यंत को देवराज इंद्र का स्मरण हो आता है और वो उनका आह्वाहन करके उनसे सहायता माँगते हैं। अनभिज्ञ बनकर देवराज इंद्र सम्राट से देवासुर संग्राम में साथ देने का वचन लेते हैं और वचन भी देते हैं कि युद्ध के उपरांत भगवद कृपा और माँ आदिशक्ति के वरदान से उनके कष्टों व वेदना का निराकरण हो जाएगा। कई वर्षों के अनवरत युद्ध के उपरांत सम्राट दुष्यंत के हाथों पाताल लोक के असुर दुर्जय का अंत होता है। स्वर्गलोक में प्रसन्नता की लहर फैल जाती है। देवराज इंद्र स्वयं ही सम्राट दुष्यंत के सारथी बनकर उन्हें तपस्वी लोक ले जाते हैं जहाँ कश्यप मुनि के आश्रम में सम्राट की भेंट अपने पुत्र सर्वदमन भरत और धर्मपत्नी शकुंतला से होती है। देवराज इंद्र अपना वचन पूर्ण करते हैं और सबको हस्तिनापुर पहुँचाते हैं। इस प्रकार सर्वत्र हर्ष ही हर्ष छा जाता है।
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    23 分
  • अंत या आरम्भ
    2021/12/01
    सम्राट दुष्यंत और देवी शकुंतला के बीच का वार्तालाप ऐसे मोड़ पे पहुँचता है जहाँ सम्राट को अत्यंत क्रोध आ जाता है। विलाप करती हुयी देवी शकुंतला को कश्यप मुनि एक दिव्य रथ में बिठाकर अपने संग स्वर्गलोक ले जाते हैं। देवराज इंद्र और मुनिवर सर्वप्रथम देवी शकुंतला को सांत्वना देते हैं फिर विधाता के भविष्य लीला का चक्र समझते हैं। देवी शकुंतला देवराज का सुझाव मानकर कश्यप मुनि के आश्रम में अपने बालक का लालन पालन करने को हामी भर देती हैं। इधर हस्तिनापुर में एक मछुआरे से सम्राट दुष्यंत की राजमुद्रिका मिलती है। विदूषक माधव्य के निवेदन पर सम्राट जैसे ही राजमुद्रिका का स्पर्श मात्र करते हैं कि ऋषि दुर्वासा का श्राप प्रभावहीन हो जाता है और सम्राट की स्मृति में सब कुछ चित्र की भाँति प्रकट हो जाता है।
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    22 分
  • दुर्भाग्य लीला
    2021/12/01
    नई नवेली दुल्हन की तरह साजो श्रिंगार करके देवी शकुंतला की विदायी की गयी। हाथी पे सवार होकर वो हस्तिनापुर की ओर चलीं। मार्ग में कड़ी धूप जब बाधा बनी तो ईश्वर की कृपा से ऋतु परिवर्तन हो गया। शीतल हवा बहने लगी और काली घटाओं ने सूर्य की प्रखर किरणों को ढंक दिया। अंतत: प्रातः काल होते होते हस्तिनापुर पहुँच ही गयीं देवी शकुंतला। सम्राट दुष्यंत से भेंट के उपरांत उन्होंने देवी शकुंतला को स्वीकारने ही नहीं अपितु पहचानने से भी अस्वीकार कर दिया। वाद विवाद कटु होता गया। ऋषिकुमारों के आरोपों का खंडन करके क्रोधित हो चुके सम्राट दुष्यंत ने देवी शकुंतला से वार्तालाप करने का मन बनाया।
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    17 分
  • वियोगिनी शकुंतला
    2021/12/01
    कुलपति कन्व का तपोवन में आगमन हो चुका है और हर्षोउल्लास के साथ उनके तीर्थाटन से सकुशल लौट आने की प्रसन्नता में पूजा अर्चना की जाती है। देवी शकुंतला पर दृष्टि पड़ते ही अनहोनी की आशंका से उनका हृदय दुखी हो जाता है। ऋषिकुमारों के माध्यम से कुलपति कन्व अपनी प्रिय पुत्री देवी शकुंतला को संदेश भिजवाते हैं। पिताश्री से भेंट ना हो पाने की स्थिति में देवी शकुंतला हताश निराश हो जाती हैं किंतु उनकी उलझन का समाधान ऋषिकुमार तत्काल ही कर देते हैं। उधर हस्तिनापुर में ऋषि दुर्वासा के श्राप के दुष्प्रभाव से सम्राट दुष्यंत तपोवन से लेकर उपवन तक की तमाम लीलाएँ भूले बिसरे बैठे हैं और ये बात विदूषक माधव्य को हतोत्साहित कर रही है।
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    16 分
  • ऋषिश्राप का दुष्परिणाम
    2021/12/01
    देवी शकुंतला विरह वेदना में अपनी सुध बुध खोकर ऋषि दुर्वासा से श्रापित हो चुकी हैं और इस बात से अनभिज्ञ भी हैं। प्रियमवदा के अथक प्रयास से एक मार्ग निकल आया है जो कि श्राप को प्रभावहीन कर सकता है वो है सम्राट दुष्यंत द्वारा देवी शकुंतला को दी गयी अँगूठी। हस्तिनापुर पहुँचने के उपरांत एक दिन में ही सम्राट की वाणी व उनकी भाषा में आए परिवर्तन से विदूषक माधव्य गहन सोच में पड़ जाते हैं क्यूँकि अब सम्राट को उपवन लौटने की कोई शीघ्रता ही नहीं है बल्कि ऐसी कोई योजना ही नहीं है। ऋषि दुर्वासा का श्राप अपना दुष्प्रभाव सम्राट दुष्यंत पे दिखा चुका है। इधर तपोवन में सारे आश्रमवासी कुलपति कन्व के स्वागत के प्रबंध में लगे हुए हैं।
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    15 分
  • ऋषि दुर्वासा का श्राप
    2021/12/01
    देवी शकुंतला विरह वेदना में अपनी सुध बुध खो चुकी हैं। सम्राट दुष्यंत के हस्तिनापुर प्रस्थान के उपरांत एक दिन में ही उनकी दशा सोचनीय हो गयी है। प्रियमवदा का मनाने और समझाने का भी कोई विशेष प्रभाव नहीं हुआ है। इधर सम्राट दुष्यंत की भी यही दशा है जो बिना विराम और विश्राम के हस्तिनापुर पहुँचकर शीघ्रतापूर्वक वापिस तपोवन लौटने को इच्छुक हैं। विदूषक माधव्य उन्हें भी सचेत करते हैं कि भोजन और विश्राम की आवश्यकता सबको है तो वो मान जाते हैं। यहाँ तपोवन में देवी शकुंतला के लिए रात्रि जैसे तैसे व्यतीत होती है तो वहीं भिक्षा माँगने आए क्रोधी ऋषि दुर्वासा देवी शकुंतला को उनकी अवमानना का दंड देने हेतु श्राप देते हैं।
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    16 分
  • संजोग या दैवयोग
    2021/12/01
    देवराज इंद्र का पृथ्वीलोक में आगमन कुछ इस प्रकार होता है कि घबरायी हुयी देवी शकुंतला मूर्छित होकर गिर पड़ती हैं। देवराज इंद्र दैविक विधि से देवी शकुंतला की चेतना लौटाते हैं और भेंटपूर्वक दिव्य रसायन देकर उन्हें अद्भुत शक्ति देते हुए हर्षपूर्वक सूचना देते हैं कि अब असुर दुर्जय के साथ उनके युद्ध का अंत हो चुका है क्यूँकि उनका गंधर्व विवाह असुरों की योजना पे पानी फेर देता है। सबकी मंगलकामना का आशीर्वाद देकर देवराज इंद्र स्वर्गलोक लौट जाते हैं। हस्तिनापुर से मिले समाचार से माधव्य हिचकिचाते हुए सम्राट दुष्यंत को अवगत कराते हैं कि राजमाता ने बुलावा भेजा है। राजमाता का प्राण है बिना सम्राट का मुख देखे उपवास का पारण नहीं करेंगी। सम्राट दुष्यंत बुझे मन से देवी शकुंतला से विदा लेते हैं।
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    17 分
  • युद्ध विराम
    2021/12/01
    सम्राट दुष्यंत और देवी शकुंतला गंधर्व विवाह के पश्चात प्रणय प्रसंग में डूबे हुए थे और इधर विदूषक माधव्य परेशान थे क्यूँकि कोतवाल सुबुद्धि संदिग्ध ढंग से पकड़े गए थे और अपने आपको असुर दुर्जय का अनुचर घोषित कर रहे थे। उपवन में सम्राट से भेंट होने के उपरांत माधव्य उन्हें लेकर सैन्य शिविर पहुँचते हैं। कोतवाल सुबुद्धि को माध्यम बनाकर मायावी दुर्जय अपनी वाणी में सम्राट को दुष्परिणाम भुगतने की चेतावनी देता है और युद्ध विराम की घोषणा भी करता है। सम्राट को धूर्त दुर्जय पे पूर्णतया विश्वास तो नहीं होता है किंतु इतना स्पष्ट हो जाता है कि दुर्जय चंडिका शूल से भयभीत है। देवी शकुंतला नेत्र खुलते ही अनिष्ट की आशंका से यज्ञशाला की ओर शीघ्रता से पहुँचने के क्रम में गिरकर मूर्छित हो जाती हैं।
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    17 分