
महर्षि मुक्त सूत्र-सागर: आत्मबोध के सिद्धांत
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このコンテンツについて
महर्षि मुक्त एक ऐसे आत्मज्ञानी थे जिनके लिए न कोई बाह्य पूजा, न कोई ग्रंथ, न कोई संप्रदाय महत्वपूर्ण था। वे स्वभाव, सहजता और ‘मैं’ की अखंड चेतना में स्थित थे। उनका व्यक्तित्व वैराग्य, अद्वैत, राष्ट्रप्रेम, आध्यात्मिक स्वराज्य और ब्रह्मबोध का अद्वितीय संगम है।प्रस्तुत कड़ी "महर्षि मुक्त सूत्र-सागर: प्रथम तरंग" नामक पुस्तक से उद्धृत हैं, जिसमें जीवन, ब्रह्म, माया, और आत्मज्ञान से संबंधित गहन दार्शनिक सूत्र दिए गए हैं। ये सूत्र स्वयं की पहचान और वास्तविक सत्य को समझने के महत्व पर बल देते हैं। ग्रंथ आध्यात्मिक मुक्ति और आनंद की प्राप्ति के मार्ग को उजागर करता है, विभिन्न अवधारणाओं जैसे 'स्वदेश' (स्वयं की स्थिति), 'मैं' (आत्म-बोध), और विकल्पों के अभाव को ईश्वरत्व के रूप में स्पष्ट करता है। यह पाठक को आंतरिक स्वतंत्रता और स्थायी शांति की ओर मार्गदर्शन करता है, जिसमें कर्म, ज्ञान और भक्ति के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है।महर्षि मुक्त सूत्र सागर में संकलित सूत्र, व्यापक व्याप्य अखंड अनन्ता-अनंत रूप शब्द-ब्रह्म महोदधि की हिलोरेंहैं। एक ही हिलोर-सूत्र का स्पर्श (हृदयंगम हो जाना) ब्रह्म स्पर्श संस्पर्शप्रदान करने की क्षमता रखता है ।
यह प्रशंसा नहीं -अनुभवोद्गार है ।
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