
दोहा: शिल्प और प्रयोग
カートのアイテムが多すぎます
カートに追加できませんでした。
ウィッシュリストに追加できませんでした。
ほしい物リストの削除に失敗しました。
ポッドキャストのフォローに失敗しました
ポッドキャストのフォロー解除に失敗しました
-
ナレーター:
-
著者:
このコンテンツについて
इस कड़ी में रमेश चौहान की दोहा प्रभाकर के "दोहा: शिल्प और प्रयोग" खण्ड़ से लिए गए उद्धरण दोहे की प्रकृति और इसके विभिन्न काव्यात्मक अनुप्रयोगों का विवरण प्रस्तुत है। यह दोहे को एक मुक्तक छंद के रूप में परिभाषित करता है जो एक ही इकाई में पूर्ण अर्थ समाहित करता है, अक्सर "गागर में सागर" के समान भाव व्यक्त करता है। इसमें पारंपरिक दोहे के अलावा दोहा-गीत, सिंहावलोकनी दोहा, और दोहा मुक्तक जैसे नए प्रयोगात्मक रूपों की भी चर्चा है, जो दोहे के अंतर्निहित गेय गुणों और इसकी अनुकूलनशीलता को प्रदर्शित करते हैं। उदाहरणों के माध्यम से, यह दोहे की शिल्पगत विशेषताओं को स्पष्ट करता है, जैसे कि शब्दों का सटीक चयन और विभिन्न रचनाओं में तुक और विन्यास का समावेश। कुल मिलाकर, पाठ दोहे की कालजयी अपील और आधुनिक काव्यात्मक संदर्भों में इसकी बहुमुखी प्रतिभा को रेखांकित करता है।
आप 'दोहा प्रभाकर' यहां से प्राप्त कर सकते हैं https://amzn.in/d/gPrm66G#दोहाप्रभाकर
#दोहाकाशिल्प
#कविताकीखोज
#दोहामुक्तक
#सिंहावलोकनीदोहा
#दोहाएकनवस्वर
#KabirToContemporary
#HindiPoetryPodcast
#DohaExperiment
#ModernDoha
#RameshChauhanPoetry
#DohaInNewLight