• “ज्ञानविज्ञानयोग – आत्मिक और भौतिक संतुलन”
    2025/08/15
    गीता-योग: अध्यात्मिक प्रबोधन की श्रवण यात्रा के इस नौवें एपिसोड में हम श्रीमद्भगवद गीता के सातवें अध्याय — ज्ञानविज्ञानयोग — की गहराइयों में उतरेंगे। यह अध्याय न केवल दार्शनिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे जीवन के भौतिक और आध्यात्मिक पहलुओं के बीच सामंजस्य स्थापित करने का एक व्यावहारिक मार्गदर्शन भी प्रदान करता है।भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि आध्यात्मिक यात्रा में केवल ज्ञान (सैद्धांतिक या बौद्धिक समझ) ही पर्याप्त नहीं है; विज्ञान (प्रत्यक्ष अनुभव और साक्षात्कार) भी उतना ही आवश्यक है। ज्ञान वह है जो हमें शास्त्रों, गुरुओं और तर्क से प्राप्त होता है — जैसे आत्मा, ईश्वर और ब्रह्मांड के सिद्धांतों की समझ।विज्ञान, इसके विपरीत, उस ज्ञान का प्रत्यक्ष अनुभव है, जो साधना, भक्ति और ध्यान के माध्यम से आत्मसात होता है। जब ये दोनों एक साथ आते हैं, तो व्यक्ति न केवल सिद्धांत जानता है, बल्कि उसे जीता भी है।श्रीकृष्ण ब्रह्मांड की रचना को दो प्रकार की प्रकृति में विभाजित करते हैं:अपरा प्रकृति – यह भौतिक प्रकृति है, जिसमें पाँच महाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश), मन, बुद्धि और अहंकार शामिल हैं। यह परिवर्तनशील और नश्वर है।परा प्रकृति – यह जीवात्मा या चेतना है, जो अविनाशी, शुद्ध और अनंत है।यह शिक्षण हमें यह समझाता है कि हमारा शरीर और मन अपरा प्रकृति का हिस्सा हैं, जबकि हमारा वास्तविक ‘स्व’ परा प्रकृति का अंश है, जो ईश्वर से सीधा जुड़ा हुआ है।श्रीकृष्ण स्पष्ट करते हैं कि माया — उनकी दिव्य शक्ति — जीवात्मा को अपने वास्तविक स्वरूप से दूर कर देती है। माया के प्रभाव से व्यक्ति भौतिक इच्छाओं, अहंकार, और अस्थायी सुखों में उलझा रहता है।माया का यह आवरण तभी हटता है जब व्यक्ति पूर्ण भक्ति और आत्मसमर्पण के मार्ग पर चलता है। यह संदेश आधुनिक जीवन में भी उतना ही प्रासंगिक है, क्योंकि आज भी हमारी व्यस्त जीवनशैली, भौतिक इच्छाएं और सोशल मीडिया जैसी विकर्षण शक्तियाँ हमें अपने आंतरिक स्वरूप से दूर कर देती हैं।गीता में तीन गुणों — सत्त्व (शुद्धता), रजस (क्रियाशीलता) और तमस (जड़ता) — का वर्णन है। ये तीनों प्रकृति के मूल घटक हैं, जो हमारे विचारों, भावनाओं और कर्मों को प्रभावित करते हैं।सत्त्व हमें ज्ञान, ...
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    9 分
  • सांख्य योग: ज्ञान का मार्ग और आत्मा की पहचान
    2025/08/12

    इस कड़ी में हम श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय "सांख्य योग" पर चर्चा करेंगे, जिसे गीता का हृदय भी कहा जाता है। सांख्य योग वह ज्ञानमार्ग है जो आत्मा और शरीर के बीच के भेद को स्पष्ट करता है, जीवन और मृत्यु के रहस्य को उजागर करता है, तथा स्थिर बुद्धि और समत्वभाव का संदेश देता है।

    भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद के माध्यम से हम जानेंगे—

    • आत्मा की नित्य, अविनाशी और अजर-अमर प्रकृति

    • मृत्यु के भय को कैसे दूर करें

    • अपने कर्तव्य को बिना आसक्ति के निभाने का महत्व

    • सुख-दुःख, लाभ-हानि और जय-पराजय में समभाव बनाए रखने का मार्ग

    यह एपिसोड केवल शास्त्रीय ज्ञान ही नहीं, बल्कि आधुनिक जीवन में मानसिक शांति, निर्णय लेने की क्षमता और आत्म-स्थिरता को भी बढ़ाने का मार्गदर्शन देगा।


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    8 分
  • "कर्मसन्यास योग: त्याग और कर्म का समन्वय"
    2025/08/09

    इस कड़ी में हम कर्मसन्यास योग के गूढ़ रहस्य को समझेंगे — वह योग जो हमें त्याग और कर्तव्य के बीच संतुलन बनाना सिखाता है।

    श्रीमद्भगवद्गीता के इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण स्पष्ट करते हैं कि केवल कर्मों का त्याग करना ही सच्चा सन्यास नहीं है। असली सन्यास है — फल की आसक्ति का त्याग और कर्तव्य का निर्वाह

    एपिसोड में हम चर्चा करेंगे:

    • सन्यास और त्याग में अंतर

    • कर्म का त्याग नहीं, बल्कि फलासक्ति का त्याग क्यों आवश्यक है

    • कैसे आसक्ति-रहित कर्म आत्म-शुद्धि का मार्ग बनता है

    • गृहस्थ जीवन में कर्मसन्यास योग का अनुप्रयोग

    • भगवद्गीता में कर्म, ज्ञान और भक्ति का संतुलन

    यह कड़ी उन साधकों के लिए विशेष है जो संसार में रहते हुए भी आध्यात्मिक ऊँचाई पाना चाहते हैं — बिना जिम्मेदारियों से भागे, जीवन को एक योग यात्रा में बदलते हुए।

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    6 分
  • ज्ञानविभागयोग: कर्म और ज्ञान का संगम
    2025/08/08
    "गीता-योग: अध्यात्मिक प्रबोधन की श्रवण यात्रा" के इस छठे एपिसोड में हम प्रवेश कर रहे हैं श्रीमद्भगवद्गीता के एक अत्यंत गहन और जीवन-परिवर्तनकारी अध्याय में — ज्ञानविभागयोग।यह अध्याय रमेश चौहान द्वारा रचित अध्यात्मिक प्रबोधन : गीता के 18 योग श्रृंखला के भाग 5 में विस्तार से वर्णित है, और हम इसे श्रवण यात्रा के रूप में आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं। ज्ञान और अज्ञान का भेदभगवान श्रीकृष्ण, अर्जुन को समझाते हैं कि ज्ञान और अज्ञान के बीच का अंतर केवल शब्दों का नहीं, बल्कि जीवन की दिशा का अंतर है।ज्ञान वह प्रकाश है, जो आत्मा के वास्तविक स्वरूप को प्रकट करता है और मोक्ष की राह खोलता है।अज्ञान वह अंधकार है, जो हमें मोह, लोभ, क्रोध और अहंकार में बांधे रखता है।हम इस एपिसोड में जानेंगे कि कैसे श्रीकृष्ण ज्ञान को "सर्वोच्च पवित्रता" बताते हैं और क्यों यह मानव जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति है।भगवान के अवतार का उद्देश्ययह अध्याय केवल दार्शनिक चर्चा तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें भगवान श्रीकृष्ण स्वयं अपने अवतार के तीन प्रमुख उद्देश्यों को प्रकट करते हैं:साधुजनों की रक्षा – धर्मपरायण लोगों की रक्षा करना।दुष्टों का विनाश – अधर्म और अन्याय का अंत करना।धर्म की स्थापना – युग-युग में धर्म को पुनः स्थापित करना।हम आपको उन श्लोकों का भावार्थ सुनाएँगे, जिनमें यह दिव्य घोषणा की गई है, और यह भी बताएँगे कि आज के युग में इसका क्या अर्थ है।कर्म, ज्ञान और मोक्ष का समन्वयज्ञानविभागयोग का एक अद्वितीय पक्ष यह है कि यह ज्ञान और कर्म को एक-दूसरे के विरोध में नहीं, बल्कि पूरक के रूप में प्रस्तुत करता है।ज्ञानपूर्वक किया गया कर्म ही बंधनों को तोड़ता है।अज्ञानपूर्वक किया गया कर्म हमें और अधिक बंधनों में जकड़ देता है।हम चर्चा करेंगे कि आधुनिक जीवन में कैसे ज्ञान के साथ कर्म को जोड़ा जा सकता है—चाहे आप एक विद्यार्थी हों, गृहस्थ हों, या व्यवसायी।आज के समय में प्रासंगिकताआज, जब सूचनाओं की बाढ़ है, लेकिन वास्तविक आत्मिक ज्ञान का अभाव है, यह अध्याय हमें सिखाता है:आत्मा और शरीर का भेद समझनाजीवन के उद्देश्य को पहचाननाकर्म करते हुए भी निर्लिप्त रहनायह संदेश न केवल आध्यात्मिक विकास के लिए, बल्कि मानसिक शांति और जीवन की दिशा तय करने के लिए भी ...
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    7 分
  • कर्मयोग: कर्म और कर्तव्य का रहस्य
    2025/08/05

    इस प्रेरणादायक एपिसोड में हम रमेश चौहान की पुस्तक "अध्यात्मिक प्रबोधन: गीता के 18 योग" के कर्मयोग खंड से अंश लेकर चर्चा करेंगे।
    श्रीमद्भगवद्गीता के अर्जुन और श्रीकृष्ण के संवाद के माध्यम से, हम जानेंगे कि कैसे व्यक्ति अपने कर्तव्यों को बिना किसी फल की इच्छा के निभाकर जीवन में शांति, संतुलन और पूर्णता पा सकता है।

    एपिसोड में विशेष रूप से इन विषयों पर प्रकाश डाला जाएगा:

    • कर्म, ज्ञान और भक्ति योग का आपसी संबंध

    • आधुनिक जीवन में कर्मयोग का महत्व

    • काम, क्रोध, अहंकार और इंद्रियों पर नियंत्रण

    • निष्काम भाव से कर्म करने का गीता का संदेश

    यह एपिसोड आपको न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से समृद्ध करेगा, बल्कि आपके रोज़मर्रा के जीवन में कर्मयोग के सिद्धांतों को अपनाने की प्रेरणा भी देगा।

    चाहे तो आप इस पुस्तक को पढ़ सकते हैं- https://amzn.in/d/a8A474i

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    6 分
  • सांख्य योग का परिचय
    2025/08/03

    इस एपिसोड में हम रमेश चौहान द्वारा रचित पुस्तक "अध्यात्मिक प्रबोधन : गीता के 18 योग" के तीसरे खंड "सांख्य योग: आत्मा और प्रकृति का ज्ञान" से महत्वपूर्ण विचारों को प्रस्तुत कर रहे हैं।
    भगवद्गीता के दूसरे अध्याय पर आधारित यह चर्चा आत्मा की अमरता, कर्तव्य के मार्ग, और सांख्य योग व कर्म योग के गहरे संबंध को उजागर करती है।
    श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवादों के माध्यम से आत्म-ज्ञान, विवेक और धर्म की नई दृष्टि प्राप्त करें।

    🕉️ यह एपिसोड उन सभी के लिए उपयोगी है जो भारतीय दर्शन, गीता के योगों, और आत्मिक जागरण में रुचि रखते हैं।

    सांख्य योग को विस्तार से समझने के लिये अध्यात्मिक प्रबोधन : गीता के 18 योग के इस भाग की पुस्तक खरीद सकते है-https://amzn.in/d/9dWFfYo#सांख्ययोग #गीता_का_ज्ञान #अध्यात्मिकप्रबोधन #रमेशचौहान #BhagavadGitaPodcast #GeetaWisdom #आत्मज्ञान #SpiritualAwakening #SanatanDharma #KarmaYoga #IndianPhilosophy #PodcastInHindi #VedanticWisdom #GeetaGyan #ShriKrishnaUpdesh

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  • अर्जुनविषादयोग: कर्तव्य और आत्मज्ञान
    2025/08/01

    ''अध्यात्मिक प्रबोधन:गीता के 18 योग'' श्रृंखला पुस्तक की दूसरा भाग है अर्जुनविषादयोग । अर्जुनविषादयोग श्रीमद्भगवत गीता का प्रथम अध्याय है । कुरुक्षेत्र के रणभूमि में जब युद्ध का संकल्प पंडवों और कौरवों के मनों में प्रतिबिम्बित होने लगा, अर्जुन को मानवीय संदेह और आंतरिक द्वंद्व ने घेर लिया। वह अपने स्वजनों को सामने हे‌ते ही ह्रदयशून्‍य हो गया और शास्त्रों का सार—धर्म, कर्म, भक्ति, और ज्ञान—उस समय भी संसार की भूलभुलैया के समान प्रतीत हुआ। यही वह क्षण है जब अर्जुनविषादयोग कर्मयोग, भक्ति योग, ज्ञान योग आदि मार्गों के प्रारंभिक सूत्रधार की भूमिका निभाता है। यह अध्याय गीता का पहला योग नहीं है—पर यह वही प्रथम द्वंद्व है जिससे आशाओं को दीपक की पहली लौ मिलती है।

    यह एपिसोड श्रोताओं को गीता के मूल स्थर से जोड़ता है: एक ऐसा स्तर जहाँ धर्म का युद्ध बाहरी नहीं, आंतरिक है। अर्जुन का विषाद केवल भावनात्मक क्षणिका नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानव जाति की व्यथा है—जब मन नकारात्मकता में गिरता है और वह समझ खो बैठता है कि कर्तव्य क्या है।

    यह एपिसोड दर्शाता है कि अर्जुन वास्तविक अर्थ में हम सभी की प्रतिनिधित्व करते हैं। जब जीवन जुड़ता है, कर्तव्य सोशल एक्सेप्टेंस से, रिश्ते अपेक्षा से, और आत्मा विस्मृति से, तब वह व्यक्ति अर्जुन की तरह सांवली राह चुनता है।

    "क्या आपने कभी ऐसा अनुभव किया जब लक्ष्य स्पष्ट न हो, मन द्वंद्व में घिरा हो और निर्णय कारागार सा प्रतीत होता हो? अर्जुन ने वही महसूस किया— वही वह स्रोत भी है जहां जागृति आरंभ होती है।"

    यहां तक कि आधुनिक जीवन में युवा जाति अपनी नसों में अर्जुन की असमंजस की गूंज सुन सकती है—करियर बनाम परिवार, सामाजिक दायित्व बनाम आत्मिक लक्ष्य, सफलता बनाम संतोष—यह सार है इस एपिसोड का ।

    ''अध्यात्मिक प्रबोधन:गीता के 18 योग'' श्रृंखला पुस्तक की दूसरा भाग है अर्जुनविषादयोग को आप पढ़ सकते हैं-https://amzn.in/d/gbnMM4m

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  • भाग-2- गीता के 18 योग: अध्यात्मिक प्रबोधन और जीवन दर्शन
    2025/08/01

    होस्ट: रमेश चौहान — शिक्षक, आध्यात्मिक विचारक और लेखक

    इस भाग में हम ''अध्यात्मिक प्रबोधन:गीता के 18 योग'' के प्रस्तावना खण्ड का विश्लेषण कर रहे हैं, जो संपूर्ण ग्रंथ के लिये एक नींव का निर्माण करेगा । यह आने वाली कड़ियों को समझने के लिये एक सेतु का कार्य करेगा । संपूर्ण गीता का सांस्कृतिक, अध्यात्मिक महत्व के अतिरिक्त आधुनिक जीवन में इसकी सार्थकता और उपयोगिता पर ध्यान केन्द्रित करना और लोगों तक इसकी सार्थकता पहुँचना ही हमारा एक मात्र उद्देश्य है ।

    यदि आप जीवन में स्थिरता, आत्मबल और गहराई से जीने का मार्ग खोज रहे हैं—तो यह श्रृंखला आपके लिए है।

    इस चर्चा के आधार को विस्तार से समझने के लिये आप यह पढ़ सकते हैं- https://amzn.in/d/gAaWKzP

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