
आत्मबोध: अज्ञान से कृतकृत्य तक
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महर्षि मुक्त सूत्र पॉडकास्ट शो के इस आठवें एपिसोड में हम महर्षि मुक्त के श्रीमद्भागवत रहस्य के उन गूढ़ विचारों की चर्चा करेंगे जो आत्म-ज्ञान और अज्ञान के मूल अंतर को उजागर करते हैं। गीता के सशक्त श्लोकों के माध्यम से महर्षि मुक्त बताते हैं कि “कर्म का कर्ता और भोक्ता” होने का भाव अज्ञान का परिणाम है। जैसे कमल का पत्ता जल में रहकर भी उससे अछूता रहता है, वैसे ही ज्ञानी व्यक्ति संसार में रहते हुए भी कर्म के बंधन से मुक्त रहता है।
यह प्रवचन प्रारब्ध कर्मों के नाश और ज्ञानाग्नि से सभी कर्मों के भस्म होने के बीच के विरोधाभास को सुलझाता है। महर्षि स्पष्ट करते हैं कि सच्चे आत्म-बोध के क्षण में संचित, प्रारब्ध और क्रियमाण – तीनों ही प्रकार के कर्म नष्ट हो जाते हैं।
ग्रंथ देह, जीव और ब्रह्म के अध्यास को क्रमशः तमोगुण, रजोगुण और सतोगुण से जोड़ते हुए यह बताता है कि “मैं ब्रह्म हूँ” केवल एक भावना नहीं, बल्कि पूर्ण अनुभव और बोध का विषय है।
अंततः, यह एपिसोड माया के उन सूक्ष्म विघ्नों को भी रेखांकित करता है जो आत्म-बोध की राह में बाधा बनते हैं, और यह संदेश देता है कि सच्ची कृतकृत्यता तभी आती है जब सभी भावनाएं निवृत्त होकर आत्मा अपनी पूर्णता को पहचान लेती है।
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